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"मौसम पूस माघ के / शांति सुमन" के अवतरणों में अंतर

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ओ रे मौसम पूस माघ के
 
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जब भी आना गाँव में
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ढेरों बन्द लिफाफे लाना
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शहरों से पंजाब के ।
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सुजनी खाँस रही है माँ की
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बहनों की अंगिया मटमैली
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सूने खलिहानों का छाया
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भाभी की आँखों में फैली ।
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बाबा ने चौपहरा पूजा
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रख दी मन में दाब के ।
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खेतों के मेड़ों पर ठहका
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करते थे जो आते-जाते
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कितने अपने लालकका वे
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आँखों से हैं बतियाते ।
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सूखा या बाढ़ कहीं कुछ भी
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गुल फूलेंगे आदाब के ।
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गाँवों से निकली पगडंडी
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मिलने आई दूर शहर से
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बरफी पर बरसी महँगाई
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ईद और होली के डर से
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धूप-हवा से जीने का मन
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अब तो बिना दबाव के ।
 
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00:44, 27 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण

ओ रे मौसम पूस माघ के
जब भी आना गाँव में
ढेरों बन्द लिफाफे लाना
शहरों से पंजाब के ।

सुजनी खाँस रही है माँ की
बहनों की अंगिया मटमैली
सूने खलिहानों का छाया
भाभी की आँखों में फैली ।

बाबा ने चौपहरा पूजा
रख दी मन में दाब के ।

खेतों के मेड़ों पर ठहका
करते थे जो आते-जाते
कितने अपने लालकका वे
आँखों से हैं बतियाते ।

सूखा या बाढ़ कहीं कुछ भी
गुल फूलेंगे आदाब के ।

गाँवों से निकली पगडंडी
मिलने आई दूर शहर से
बरफी पर बरसी महँगाई
ईद और होली के डर से

धूप-हवा से जीने का मन
अब तो बिना दबाव के ।