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"जायज-नाजायज / संध्या पेडणेकर" के अवतरणों में अंतर

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[[जायज-नाजायज / संध्या पेडण॓कर]]<poem>  
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अपना है तो  
 
अपना है तो  
 
जायज है  
 
जायज है  

20:15, 1 मार्च 2010 का अवतरण

अपना है तो
जायज है
कभी स्वाभिमान है,
कभी
अस्मिता है
कभी और कुछ
सकारात्मक
जिसका पोषण करना
जरूरी है
किसी और का हो
तो
गैरजरूरी है,
नाजायज है
बेमतलब है
अकारण है
इसलिए
एन केन प्रकारेण
अपनी इज्जत गिरवी रखकर ही सही
उसे कुचलना चाहिए
कहीं उसका अहंकार
अपने अहंकार कस आगे
भारी पड़ा तो?
दिखावटी टुच्ची लडाई
सच ने जीत ली तो?
नाक कट जायेगी,
स्वाभिमान मिट जायेगा
इसलिए
नाजायज अहंकार को कुचलने के लिए
जायज अहंकार को बिच जाना होगा
बेआबरू का सैलाब बह जाने देना होगा

हो सके तो
उसी सैलाब में
उसके अहंकार को
कुचलना होगा
दफनाना होग