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"अजनबी शहर के / राही मासूम रज़ा" के अवतरणों में अंतर

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अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
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अजनबी शहर के/में अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
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ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
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जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे
  
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे ।।
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ज़ख्म जब भी कोई ज़हन-ओ-दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
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हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे
  
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कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
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इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे
  
ज़हर मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
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सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने-वफ़ा
 
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हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।
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कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
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हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।
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07:37, 28 मार्च 2010 का अवतरण

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते, मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे

ज़हर मिलता रहा ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे

ज़ख्म जब भी कोई ज़हन-ओ-दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं, चोट खाते रहे गुनगुनाते रहे

कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया
इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे

सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने-वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे