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पता नहीं कितनी रिक्तता थी-
 
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जो भी मुझमे होकर गुजरा -रीत गया  
 
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पता नहीं कितना अन्धकार था मुझमे  
 
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मैं सारी उम्र चमकने  की कोशिश में  
 
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बीत गया .
 
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भलमनसाहत  
 
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और मानसून के बिच खड़ा मैं  
 
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ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ
 
ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ
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मैं अपनी व्यवस्थाओं में  
 
मैं अपनी व्यवस्थाओं में  
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बीमार हू
 
बीमार हू

23:29, 14 अप्रैल 2010 का अवतरण

पता नहीं कितनी रिक्तता थी-

जो भी मुझमे होकर गुजरा -रीत गया

पता नहीं कितना अन्धकार था मुझमे

मैं सारी उम्र चमकने की कोशिश में

बीत गया .


भलमनसाहत

और मानसून के बिच खड़ा मैं

ऑक्सीजन का कर्ज़दार हूँ

मैं अपनी व्यवस्थाओं में

बीमार हू