"खबर मिली है / अशोक तिवारी" के अवतरणों में अंतर
Ashok Tiwari (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <h1><b>खबर मिली है</b> </h1> <br><pre> रचनाकार=अशोक तिवारी </pre> <poem> खबर मिली है ड्योड…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | रचनाकार=अशोक तिवारी | + | |रचनाकार=अशोक तिवारी |
− | + | |संग्रह= | |
− | < | + | }} |
− | खबर मिली है | + | {{KKCatKavita}} |
+ | <Poem> | ||
+ | खबर मिली है ड्योड़ी पर माँ | ||
रोज़ सुबह ताका करती है | रोज़ सुबह ताका करती है | ||
स्कूल जा रहे बच्चों को | स्कूल जा रहे बच्चों को | ||
− | + | दफ़्तर आते-जाते सबको | |
याद किया करती है उनमें अपने बच्चे | याद किया करती है उनमें अपने बच्चे | ||
− | चले गए जो पेट की | + | चले गए जो पेट की ख़ातिर दूर-दूर तक |
− | + | ख़बर मिली है | |
− | + | माँ की आँखें दर्द कर रहीं | |
गाढ़ी झिल्ली छाई रेटिना के ऊपर | गाढ़ी झिल्ली छाई रेटिना के ऊपर | ||
− | दिखना उसका | + | दिखना उसका ख़त्म हो रहा धीरे-धीरे |
− | + | ख़बर मिली है | |
− | + | माँ की टाँगें बोझ नहीं सह पातीं हैं अब | |
रह-रहकर दबवाती तलवे | रह-रहकर दबवाती तलवे | ||
चलते-चलते रुक जाती है | चलते-चलते रुक जाती है | ||
जगह-जगह पर | जगह-जगह पर | ||
पर चलती जाती, चलती जाती | पर चलती जाती, चलती जाती | ||
− | कहीं पहुँचने | + | कहीं पहुँचने.... |
− | + | ख़बर मिली है | |
− | + | माँ अक्सर सोचा करती है बीती बातें | |
या आने वाले कल की बातें | या आने वाले कल की बातें | ||
कुछ सुख की, कुछ दुःख की बातें | कुछ सुख की, कुछ दुःख की बातें | ||
− | रोज़ देर से सोती | + | रोज़ देर से सोती माँ जगती है जल्दी |
और जागकर देखा करती उन सपनों को | और जागकर देखा करती उन सपनों को | ||
देख नहीं पाती है जिनको गहरी नींद में | देख नहीं पाती है जिनको गहरी नींद में | ||
− | + | ख़बर मिली है | |
सहेज रही है बिखरे अपने सारे सपने | सहेज रही है बिखरे अपने सारे सपने | ||
− | + | ख़बर मिली है | |
− | अरमानों को लेकर | + | अरमानों को लेकर माँ बेचैन नहीं है |
− | + | ख़बर मिली है | |
− | + | माँ को एक उम्मीद बँधी है | |
बचपन को जीने की फिर से | बचपन को जीने की फिर से | ||
− | + | ख़बर मिली है | |
− | एक बार फिर | + | एक बार फिर माँ से सुनते ढेरों बच्चे |
− | + | किस्स- कहानी | |
हुआ करते हैं जिसमें | हुआ करते हैं जिसमें | ||
शेखचिल्ली और कोरिया जैसे पात्र | शेखचिल्ली और कोरिया जैसे पात्र | ||
करते हैं जो मेहनत दुनियाभर की | करते हैं जो मेहनत दुनियाभर की | ||
− | कहे जाते हैं पर सरेआम | + | कहे जाते हैं पर सरेआम बेवकूफ़ फिर भी |
− | + | ख़बर मिली है | |
− | इतने पर भी करती है | + | इतने पर भी करती है माँ |
घर का पूरा काम | घर का पूरा काम | ||
मशगूल रहती है सुबह-शाम | मशगूल रहती है सुबह-शाम | ||
भरते हुए | भरते हुए | ||
शेखचिल्ली और कोरिया जैसों के सत्व को अपने अंदर | शेखचिल्ली और कोरिया जैसों के सत्व को अपने अंदर | ||
− | + | बेवकफ़फ बनने-बनाने के लिए नहीं | |
पाने के लिए अपने हक को | पाने के लिए अपने हक को | ||
मेहनत के बल पर | मेहनत के बल पर | ||
− | + | ख़बर मिली है | |
− | + | माँ का चेहरा खिला-खिला है | |
उसे नाज़ है | उसे नाज़ है | ||
अपने उस होने का | अपने उस होने का | ||
पंक्ति 66: | पंक्ति 68: | ||
उस न होने को, जो वो नहीं हो पाई | उस न होने को, जो वो नहीं हो पाई | ||
− | + | ख़बर मिली है | |
− | मेरी | + | मेरी माँ अब |
− | गाँव गढ़ी में सबकी | + | गाँव गढ़ी में सबकी माँ है |
− | + | ||
</poem> | </poem> |
00:34, 28 अप्रैल 2010 का अवतरण
खबर मिली है ड्योड़ी पर माँ
रोज़ सुबह ताका करती है
स्कूल जा रहे बच्चों को
दफ़्तर आते-जाते सबको
याद किया करती है उनमें अपने बच्चे
चले गए जो पेट की ख़ातिर दूर-दूर तक
ख़बर मिली है
माँ की आँखें दर्द कर रहीं
गाढ़ी झिल्ली छाई रेटिना के ऊपर
दिखना उसका ख़त्म हो रहा धीरे-धीरे
ख़बर मिली है
माँ की टाँगें बोझ नहीं सह पातीं हैं अब
रह-रहकर दबवाती तलवे
चलते-चलते रुक जाती है
जगह-जगह पर
पर चलती जाती, चलती जाती
कहीं पहुँचने....
ख़बर मिली है
माँ अक्सर सोचा करती है बीती बातें
या आने वाले कल की बातें
कुछ सुख की, कुछ दुःख की बातें
रोज़ देर से सोती माँ जगती है जल्दी
और जागकर देखा करती उन सपनों को
देख नहीं पाती है जिनको गहरी नींद में
ख़बर मिली है
सहेज रही है बिखरे अपने सारे सपने
ख़बर मिली है
अरमानों को लेकर माँ बेचैन नहीं है
ख़बर मिली है
माँ को एक उम्मीद बँधी है
बचपन को जीने की फिर से
ख़बर मिली है
एक बार फिर माँ से सुनते ढेरों बच्चे
किस्स- कहानी
हुआ करते हैं जिसमें
शेखचिल्ली और कोरिया जैसे पात्र
करते हैं जो मेहनत दुनियाभर की
कहे जाते हैं पर सरेआम बेवकूफ़ फिर भी
ख़बर मिली है
इतने पर भी करती है माँ
घर का पूरा काम
मशगूल रहती है सुबह-शाम
भरते हुए
शेखचिल्ली और कोरिया जैसों के सत्व को अपने अंदर
बेवकफ़फ बनने-बनाने के लिए नहीं
पाने के लिए अपने हक को
मेहनत के बल पर
ख़बर मिली है
माँ का चेहरा खिला-खिला है
उसे नाज़ है
अपने उस होने का
जो वो हो पाई
और कोसा करती है
उस न होने को, जो वो नहीं हो पाई
ख़बर मिली है
मेरी माँ अब
गाँव गढ़ी में सबकी माँ है