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दोहे / आनंद कृष्ण

6 bytes added, 20:05, 1 मई 2010
जीवन का यह रूप भी, लिखा हमारे माथ।
क्षीणकाय निर्बल नदी, पडी पड़ी रेट की सेज"आँचल में जल नहीं-" इस, पीडा पीड़ा से लबरेज़।
दोपहरी बोझिल हुई, शाम हुई निष्प्राण.
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