|संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा
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इस तन्हाई में फकीरे
दिन बीते धीरे-धीरे
:::यहाँ सागर की राहों में
कभी नभ में छाते बादल
बजते ज्यूँ बजता मादल
:::मन हर्षित होते घटाओं के
सागर का खारा पानी
धूप से हो जाता धानी
:::रंग लहके पीत छटाओं के
जब याद घर की आती
मन को बेहद भरमाती
:::स्वर आकुल होते चाहों के
बस श्वेत-सलेटी पाखी
जब उड़ दे जाते झाँकी
:::मलहम लगती कुछ आहों पे
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