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:वह एक बूँद संसृति की
:नभ के विशाल करतल पर,
:डूबे असीम-सुखमा में :सब ओर-छोर के अन्तर। :झंकार विश्व-जीवन की :हौले हौले होती लय :वह शेष, भले ही अविदित, :वह शब्द-मुक्त शुचि-आशय।:वह एक अनन्त-प्रतीक्षा :नीरव, अनिमेष विलोचन, :अस्पृश्य, अदृश्य विभा वह, :जीवन की साश्रु-नयन क्षण। :वह शशि-किरणों से उतरी :चुपके मेरे आँगन पर, :उर की आभा में खोई, :अपनी ही छवि से सुन्दर।:वह खड़ी दृगों के सम्मुख :सब रूप, रेख रँग ओझल :अनुभूति-मात्र-सी उर में :आभास शान्त, शुचि, उज्जवल! :वह है, वह नहीं, अनिर्वच’, :जग उसमें, वह जग में लय, :साकार-चेतना सी वह, :जिसमें अचेत जीवाशय!
रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२
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