भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वक्त का जादू / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: वक्त का जादू भोले-भाले मासूम बच्चे खेलते-खेलते गायब हो जाएं अल्…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}
 +
{KKRachna}
 +
{{मुकेश मानस}}
 +
<poem>
  
 
वक्त का जादू
 
वक्त का जादू

20:54, 15 मई 2010 का अवतरण

{{KKGlobal} {KKRachna} साँचा:मुकेश मानस


वक्त का जादू


भोले-भाले मासूम बच्चे
खेलते-खेलते गायब हो जाएं

अल्ल-सुबह घूमने निकले बुजुर्ग
लौटकर घर न आएं

चहकती-महकती लड़कियां
ख़ौफ़ज़दा पुतलियों में बदल जाएं

देखते-देखते खुशबूदार फूल
धारदार शूल बन जाएं

हमने पहले तो नहीं देखा
भई वाह!
कैसा जबरदस्त जादू है
जो यह वक्त हमें दिखा रहा है।
जून 2000