भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हरि को धूप-दीप लै कीजै / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> हरि को धूप-दीप लै कीजै…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र | |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
हरि को धूप-दीप लै कीजै। | हरि को धूप-दीप लै कीजै। |
21:31, 21 मई 2010 के समय का अवतरण
हरि को धूप-दीप लै कीजै।
षटरस बींजन विविध भाँति के नित नित भोग धरीजै।
दही, मलाई, घी अरु माखन तापो पै लै दीजै।
’हरीचंद’ राधा-माधव-छबि, देखि बलैंया लीजै॥