भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बारिश में भीगते हुए / दिनकर कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:35, 24 मई 2010 के समय का अवतरण
बारिश में भीगते हुए
रोमानी होने की कोशिश करता हूँ
चाहता हूँ
यथार्थ के दंश को भूल जाऊँ
भूल जाऊँ
घर पहुँचने की आखिरी बस
कीचड़ से लथपथ पतलून
भूल जाऊँ
दयनीय वर्तमान
बारिश में भीगते हुए
किशोर लड़के की तरह
सीटी बजाने की कोशिश करता हूँ
गले में फँस जाती है सीटी
एक अजीब-सा स्वर निकलता है
जो मेरा नहीं होता
बारिश में भीगते हुए
मैं खुशी का स्पर्श करना चाहता हूँ
बेताल की तरह दुख
कंधे पर सवार रहता है
और पूरे वजूद को
दबाकर रखता है
मैं मौसम को कोसता हुआ
तेज़ क़दमों से
घर लौटता हूँ