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− | + | बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नया प्रतिनिधि | |
− | + | सूरज | |
− | + | डूबने से पहले शीतल पेयजल पीता है | |
− | + | और चाँद | |
− | + | एक बोतल की शक्ल में उभर आता है | |
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− | + | विज्ञापन के गीत | |
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− | + | किस कदर गद-गद होता है | |
− | + | अंग्रेज़ी में लिपटा हुआ देश | |
+ | शेयर बाज़ार के दलालों के फूले हुए चेहरे | ||
+ | पाप और पुण्य की शिकन को | ||
+ | कभी महसूस नहीं कर सकते | ||
− | + | जीने की ज़रूरी शर्त बन गई है | |
− | + | धूर्त होने की कला | |
− | + | गरीबी की रेखा की ग्लानि से | |
− | + | ऊपर उठकर उधार की समृद्घि | |
− | + | तिरंगे पर फैल जाती है | |
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− | + | कूड़ेदानों में जूठन बटोरते हुए बच्चों | |
− | + | और अधनंगी औरतों के बारे में | |
− | + | कोई विधेयक पारित नहीं होता | |
− | + | ठंडे चूल्हों को सुलगाने के बारे में | |
− | + | न्यायपालिका के पास | |
− | + | कोई विशेषाधिकार नहीं है | |
− | + | बाज़ारू बनने की होड़ में बिकाऊ | |
− | + | बना दिया गया है सूरज को | |
− | + | चाँद को धरती को | |
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10:01, 24 मई 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक : शीतल पेयजल पीता है सूरज रचनाकार: दिनकर कुमार |
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नया प्रतिनिधि सूरज डूबने से पहले शीतल पेयजल पीता है और चाँद एक बोतल की शक्ल में उभर आता है बच्चे गाते हैं विज्ञापन के गीत उछलते हैं-नाचते हैं अजीब-अजीब आवाज़ के साथ एक खुशहाल देश को प्रायोजित किया जाता है किस कदर गद-गद होता है अंग्रेज़ी में लिपटा हुआ देश शेयर बाज़ार के दलालों के फूले हुए चेहरे पाप और पुण्य की शिकन को कभी महसूस नहीं कर सकते जीने की ज़रूरी शर्त बन गई है धूर्त होने की कला गरीबी की रेखा की ग्लानि से ऊपर उठकर उधार की समृद्घि तिरंगे पर फैल जाती है कूड़ेदानों में जूठन बटोरते हुए बच्चों और अधनंगी औरतों के बारे में कोई विधेयक पारित नहीं होता ठंडे चूल्हों को सुलगाने के बारे में न्यायपालिका के पास कोई विशेषाधिकार नहीं है बाज़ारू बनने की होड़ में बिकाऊ बना दिया गया है सूरज को चाँद को धरती को मनुष्य की गरिमा को