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"इशरत / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

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इशरत!
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तू क्या कर रही थी पगली!
प्यार की बाढ में डूबेगी तू<br>
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सो जा<br>
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गर्मी तो सरकार के साथ है<br><br>
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सपने देखे जाएँगे
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कहानियों में कई दुःख।<br>
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प्रवहमान।<br><br>
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इतने दुःख कैसे समेंटूँ<br>
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'''3.'''
सफेद पन्ने फर फर उडते।<br>
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स्याही फैल जाती है <br>
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एक साथ चलती हैं कई सडकें।
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सडकें ढोती हैं कहानियाँ ।
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कहानियों में कई दुख ।
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दुखों का स्नायुतंत्रा ।
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दुखों की आकाशगंगा
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प्रवहमान।
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इतने दुःख कैसे समेंटूँ
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सफेद पन्ने फर फर उडते ।
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स्याही फैल जाती है  
 
शब्द नहीं उगते। इशरत रे!
 
शब्द नहीं उगते। इशरत रे!
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12:58, 24 मई 2010 के समय का अवतरण

1
इशरत!
सुबह अँधेरे सडक की नसों ने आग उगली
तू क्या कर रही थी पगली!
लाखों दिलों की धडकनें बनेगी तू
इतना प्यार तेरे लिए बरसेगा
प्यार की बाढ में डूबेगी तू
यह जान ही होगी चली!
सो जा
अब सो जा पगली।

2

इंतज़ार है गर्मी कम होगी
बारिश होगी
हवाएँ चलेंगी

उँगलियाँ चलेंगी
चलेगा मन

इंतज़ार है
तकलीफ़ें काग़ज़ों पर उतरेंगी
कहानियाँ लिखी जाएँगी
सपने देखे जाएँगे
इशरत तू भी जिएगी

गर्मी तो सरकार के साथ है

3.

एक साथ चलती हैं कई सडकें।
सडकें ढोती हैं कहानियाँ ।
कहानियों में कई दुख ।
दुखों का स्नायुतंत्रा ।
दुखों की आकाशगंगा
प्रवहमान।

इतने दुःख कैसे समेंटूँ
सफेद पन्ने फर फर उडते ।
स्याही फैल जाती है
शब्द नहीं उगते। इशरत रे!