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"ज़िन्दगी का नमक / निर्मला गर्ग" के अवतरणों में अंतर

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वह औरत मिली थी मुझे
 
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छोटा नागपुर जाते हुए ट्रेन में
 
छोटा नागपुर जाते हुए ट्रेन में
 
 
गठरी लिए बैठी थी संडास के पास
 
गठरी लिए बैठी थी संडास के पास
 
  
 
फिर और बहुत सारी औरतें मिलीं
 
फिर और बहुत सारी औरतें मिलीं
 
 
पूछती हुई
 
पूछती हुई
 
 
दर्ज़ करती हैं क्या कविताएँ
 
दर्ज़ करती हैं क्या कविताएँ
 
 
हमारे तसलों का ख़ालीपन
 
हमारे तसलों का ख़ालीपन
 
 
जानती हैं क्या
 
जानती हैं क्या
 
 
हमारी गठरियों में जो अनाज है
 
हमारी गठरियों में जो अनाज है
 
 
उसके कितने हिस्से में घुन है
 
उसके कितने हिस्से में घुन है
 
 
कितने में लानत
 
कितने में लानत
 
  
 
उनके चेहरों पर
 
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मौसम के जूतों के निशान थे
 
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उनकी ज़िन्दगी का नमक
 
उनकी ज़िन्दगी का नमक
 
 
उड़ा था नमक की तरह
 
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हाट-बाज़ार।
 
हाट-बाज़ार।
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21:52, 27 मई 2010 का अवतरण

   
वह औरत मिली थी मुझे
छोटा नागपुर जाते हुए ट्रेन में
गठरी लिए बैठी थी संडास के पास

फिर और बहुत सारी औरतें मिलीं
पूछती हुई
दर्ज़ करती हैं क्या कविताएँ
हमारे तसलों का ख़ालीपन
जानती हैं क्या
हमारी गठरियों में जो अनाज है
उसके कितने हिस्से में घुन है
कितने में लानत

उनके चेहरों पर
मौसम के जूतों के निशान थे
उनकी ज़िन्दगी का नमक
उड़ा था नमक की तरह
हाट-बाज़ार।