भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रास्तों की नज़्म / मदन कश्यप" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मदन कश्यप |संग्रह= नीम रोशनी में / मदन कश्यप }} <po…) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= मदन कश्यप | |रचनाकार= मदन कश्यप | ||
|संग्रह= नीम रोशनी में / मदन कश्यप | |संग्रह= नीम रोशनी में / मदन कश्यप | ||
− | }} | + | }}{{KKCatKavita}} |
<poem> | <poem> | ||
कुछ रास्ते जाते हैं पहाड़ की जड़ों के पास | कुछ रास्ते जाते हैं पहाड़ की जड़ों के पास |
21:42, 5 जून 2010 का अवतरण
कुछ रास्ते जाते हैं पहाड़ की जड़ों के पास
जहाँ से फूटती हैं पगडंडियाँ चोटी पर जाने के लिए
कुछ जाते हैं समंदर की ओर
पर लहरों तक पहुँचने से पहले ही ठिठक जाते हैं
कुछ चलते हैं दूर तक नदी के बराबर
फिर मुड़ जाते हैं किसी दूसरी तरफ
अक्सर रास्तों से फूटते हैं रास्ते
भले ही कुछ चैराहों के बाद बदल जाते हों उनके नाम
पर कभी-कभी किसी बीहड़ में अचानक दम तोड़ देता है कोई रास्ता
आदमी ही नहीं बाजदफा रास्ते भी भूल जाते हैं अपनी राह
जब रास्ता गलत हो
मंजिल तक वही पहुँच पाता है जो रास्ता भटक जाता है!