Changes

अंधकार हो दूर ज्योति-छल जल बुझ बारंबार
दृष्टि भ्रमित करत करता तह पर तह मोह तमस विस्तार!मिटे अजस्र तृषा जीवन की जो आवगम आवागम द्वार
जन्म मृत्यु के बीच खींचती आत्मा को अनजान
विश्वमयी व्ह वह आत्ममयी जो मानो इसे प्रमाण
अविचल अतः रहो सन्यासी, गाओ निर्भय गान,
:ओम् तत्सत् ओम्!
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits