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"कंगन बेले का / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

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08:54, 14 जून 2010 के समय का अवतरण

उसने मेरे हाथ में बाँधा
उजला कंगन बेले का
पहले प्यार से थमी कलाई
बाद उसके हौले-हौले पहनाया
गहना फूलों का
फिर झुककर हाथ को चूम लिया
फूल तो आखिर फूल ही थे
मुरझा ही गए
लेकिन मेरी रातें उनकी खुशबू से अब तक रोशन हैं
बाँहों पर वो लम्स अभी तक ताज़ा है
(शाख़-ए-सनोबर पर इक चाँद दमकता है )
फूल का गहना
प्रेम का कंगन
प्यार का बंधन
अब तक मेरी याद के हाथ से लिप्त हुआ है