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"हाइकु / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

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तरस गये  
 
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पहचान को खुद  
 
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सावन-भादौ
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सावन-भादौं
  
  
 
कहो तो सही  
 
कहो तो सही  
मन प्राणो से तुम  
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मन प्राणों से तुम  
 
वक्त सुनेगा ।
 
वक्त सुनेगा ।
  
  
प्रीत हाँ प्रीत
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प्रीति,  हाँ प्रीति 
 
दुनिया में सुख की  
 
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एक ही रीत
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आप से मिले  
 
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तो लगा क्या मिलना  
 
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किसी और से
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ढ़ूंढता रहा  
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खुद को दिन रात  
 
खुद को दिन रात  
ढूंढ न पाया
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रिश्तों से ज्यादा  
 
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तनाव बसते है  
 
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घरों में अब
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युग-युगो से  
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सोए पड़े पहाड़  
 
सोए पड़े पहाड़  
जागेंगे कब?
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भीड़ तो बढ़ी  
 
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विरल हो चले है
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रिश्ते परंतु ।
 
रिश्ते परंतु ।
  

09:54, 18 जून 2010 का अवतरण

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मुँह चिढ़ाती
लम्बे चौड़े पुल को
सूखती नदी ।


ऊब चले हैं
वर्षा की प्रतीक्षा में
पैड़-पौधे भी।


पीने लगा है
धरती का भी पानी
प्यासा सूरज।

 
निकली नहीं
कंजूस बादलों से
एक भी बूँद ।

 
तरस गये
पहचान को खुद
सावन-भादौं ।


कहो तो सही
मन प्राणों से तुम
वक्त सुनेगा ।


प्रीति, हाँ प्रीति
दुनिया में सुख की
एक ही रीति ।


आप से मिले
तो लगा क्या मिलना
किसी और से !


ढूँढ़ता रहा
खुद को दिन रात
ढूँढ़ न पाया !


छोटा कर दे
रातों की लम्बाई भी
गहरी नींद ।

 
छीन ही लिया
नदी का नदीपन
प्यासे बाँधों ने ।


रिश्तों से ज्यादा
तनाव बसते है
घरों में अब !

युग-युगों से
सोए पड़े पहाड़
जागेंगे कब ?

  
गावों से लाता
शुद्ध आक्सीजन भी
वश न चला ।


 
भीड़ तो बढ़ी
विरल हो चले हैं
रिश्ते परंतु ।



रात होते ही
गोलबन्द हो गये
चाँद सितारे ।


घिर गया है
विषैली लताओं से
जीवन वृक्ष ।
 

बुझते हुए
पल भर को सही
लड़ी थी लौ भी ।
 


मैं नहीं हूँ मैं
तुम भी कहाँ तुम
सब मुखौटॆ ।