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चहरे पर चमक ऐसे कि दिल्ली कि लुनाई है
जो गाँव मे बैठी है वो उनकी लुगाई है
मक्कार खुदाओं से बेहतर तो मदारी है
दिल खोल के कहता है हाँथों की सफाई है
 
हड़ताल पे टीचर है बच्चे हैं सनीमा में
बबली मे किताबोब में इक चिट्ठी छिपाई है
 
इंसान को जीने का कोई न हुनर आया
ये मेरे मदरसों की क्या खूब पढाई है
 
बीमार कहाँ जाएँ मजरूह कहाँ जाएँ
सरकारी दवाखाने मरहम न दवाई है
 
ईनाम के लालच दो या धौंस दो जिल्लत की
मैं क्यों न कहूँ वो सब जो तल्ख सचाई है
 
शहजादा नहीं इसमें शहजादी नहीं इसमें
ये कैसी कहानी है ये कैसी रुबाई है
 
मिलते हैं खुदा अक्सर रब तेरी खुदाई में
वो शख्स कहाँ जिसके पैरों में बिवाई है
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