भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"झुर्रियों से भरता हुआ / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(कोई अंतर नहीं)

21:29, 16 अगस्त 2006 का अवतरण

लेखक: भवानीप्रसाद मिश्र

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

झुर्रियों से भरता हुआ मेरा चेहरा
पहरा बन गया है मानो
तरुण मेरी इच्छाओं पर
बरबस रुक जाता हूँ
कदम उठाकर भी
किसी ऊँचाई की ओर
विरस होकर लहरें
लौट जाती हैं टकराकर पाँवों से
जो मजबूत हैं अभी
मगर मुँह ताकते हैं जो
धसने के पहले
झुर्रियों से भरे मेरे चेहरे का
गहरे जल का डर पाँवों को नहीं है
छाती को है
नाती का है जैसे दादा का डर
झुर्रियों से भरा मेरा चेहरा
नन्हीं नन्हीं इच्छाओं पर तन गया है
नया और अच्छा है यह अनुभव
लवकुश इच्छाओं के
पकड़ेंगे शायद घोड़े अश्वमेध के
साधारणतया खेद के पहले है जो
बनेगे वे गौरव के निधान
आत्मसम्मान या आत्मा का
शरीर से जीतेगा
दुविधा का एक और वक्त
बीतेगा।