भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काम नहीं चल सकता / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=हास्य नहीं, व्यंग्य / रमेश कौ…) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
जो तुमको अच्छा लगता है | जो तुमको अच्छा लगता है | ||
तुमने वही समझना चाहा | तुमने वही समझना चाहा | ||
− | चाहे वह | + | चाहे वह अस्तित्वविहीन हो |
+ | लेकिन उसको कब समझोगे | ||
+ | जो यथार्थ है | ||
+ | लेकिन रुचिकर तुम्हे न लगता. | ||
+ | |||
+ | यह दुनिया है | ||
+ | यहाँ तुम्हारे अच्छा लगने से तो | ||
+ | काम नहीं चल सकता. | ||
+ | </poem> |
22:10, 25 जून 2010 के समय का अवतरण
जो तुमको अच्छा लगता है
तुमने वही समझना चाहा
चाहे वह अस्तित्वविहीन हो
लेकिन उसको कब समझोगे
जो यथार्थ है
लेकिन रुचिकर तुम्हे न लगता.
यह दुनिया है
यहाँ तुम्हारे अच्छा लगने से तो
काम नहीं चल सकता.