भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देह के मस्तूल / चंद्रसेन विराट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<poem>
 
<poem>
 
अंजुरी-जल में प्रणय की
 
अंजुरी-जल में प्रणय की
:::अर्चना के फूल डूबे ।
+
::अर्चना के फूल डूबे ।
  
::ये अमलतासी अँधेरे,
+
:ये अमलतासी अँधेरे,
::और कचनारी उजेरे,
+
:और कचनारी उजेरे,
 
आयु के ऋतुरंग में सब
 
आयु के ऋतुरंग में सब
:::चाह के अनुकूल डूबे ।
+
::चाह के अनुकूल डूबे ।
  
::स्पर्श ने संवाद बोले,
+
:स्पर्श ने संवाद बोले,
::रक्त में तूफ़ान घोले,
+
:रक्त में तूफ़ान घोले,
 
कामना के ज्वार-जल में  
 
कामना के ज्वार-जल में  
:::देह के मस्तूल डूबे ।
+
::देह के मस्तूल डूबे ।
  
::भावना से बुद्धि मोहित-
+
:भावना से बुद्धि मोहित-
::हो गई प्रज्ञा तिरोहित,
+
:हो गई प्रज्ञा तिरोहित,
 
चेतना के तरु-शिखर डूबे,
 
चेतना के तरु-शिखर डूबे,
सुसंयम-मूल डूबे ।
+
::सुसंयम-मूल डूबे ।
 
</poem>
 
</poem>

07:41, 27 जून 2010 के समय का अवतरण

अंजुरी-जल में प्रणय की
अर्चना के फूल डूबे ।

ये अमलतासी अँधेरे,
और कचनारी उजेरे,
आयु के ऋतुरंग में सब
चाह के अनुकूल डूबे ।

स्पर्श ने संवाद बोले,
रक्त में तूफ़ान घोले,
कामना के ज्वार-जल में
देह के मस्तूल डूबे ।

भावना से बुद्धि मोहित-
हो गई प्रज्ञा तिरोहित,
चेतना के तरु-शिखर डूबे,
सुसंयम-मूल डूबे ।