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"कच्चा घड़ा / मलय" के अवतरणों में अंतर

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21:39, 27 जून 2010 का अवतरण


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कच्चा

घड़ा हूँ मैं

पिट-पिटकर

जिसकी पसलियाँ

पुख़्ता होती हैं

इस सौंधी मिट्टी में

व्याप्त खुला आकार

बसंत का ही है



मैं सूखकर भी

देखता-चूमता

निकलूँगा

हवा और

धूप के साथ



अभी अपने आप से

पार पाने

परखने

हो पाने के लिए

आग-सी आँख से

होकर



निकलना है

जब गरम

और जलता समय

मुझमें

समाकर

अदृश्य हो जाएगा

और सिक्के की तरह

टनक कर

बोलेगी मेरी आत्मा

तब हाँ तभी

आ पाऊँगा

जलती-प्यासी दुनिया के काम

इस लम्बी

जलन से

जी निकलने के बाद

हो सका तो

एक जल भरा मुकाम !