भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"झुंझलाए है लजाए है / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी |संग्रह= }}{{KKVID|v=_uBMqmqJvZ8}} {{KKCatGhazal}} <poem> झु…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:15, 28 जून 2010 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
झुंझलाए है लजाए है फिर मुस्कुराए है
इसके दिमाग से उन्हे हम याद आए है
अब जाके आह करने के आदाब आए है
दुनिया समझ रही है कि हम मुस्कुराए है
गुज़रे है मयकदे से जो तौबा के बाद हम
कुछ दूर आदतन भी कदम लड़खड़ाए है
ए जोश-ए-दुनिया देख, न करना खजी मुझे
आँखे मेरी ज़रूर है आँसू पराए है
ए मौत ए बहिश्ते सुकू आ खुशामदे
हम ज़िन्दगी में पहले-पहल मुस्कुराए है
कितनी भी मयकदे में है साकी पिला दे आज
हम तशना गाँव ज़ोद के सहरा से आए है
इंसान जीतेजी करे तौबा खताओ से
मजबूरियो ने कितने फरिश्ते बनाए है
काबे में खयरियत तो है सब हज़रत-ए-"खुमार"
ये गैर है जनाब यहाँ कैसे आए है