भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मन का तोता / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> मन का तोता ब…)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<Poem>
 
<Poem>
 
मन का तोता बोला करता
 
मन का तोता बोला करता
रोज्ज़ नये संवाद
+
रोज़ नये संवाद
  
 
महल-मलीदा-पदवी चाहे
 
महल-मलीदा-पदवी चाहे

20:42, 30 जून 2010 का अवतरण

मन का तोता बोला करता
रोज़ नये संवाद

महल-मलीदा-पदवी चाहे
लाखों-लाख पगार
काम एक ना वैसा करता
सपने आँख हज़ार

इच्छाओं की सूची भरता
देता सिर पर लाद

अपने आम बाग के मीठे
कुतर-कुतर कर फैंके
किन्तु पड़ोसी का खट्टा भी
उसको ज्यादा महके

समझाने पर करता-रहता
अड़ा-खड़ा प्रतिवाद

कि विज्ञापन की भाषा बोले
‘यह दिल माँगे मोर’
देख-देख बौराए तोता
देता खींस निपोर

बात न मानो, करने लगता
घर में रोज़ फ़साद