भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"थाली / उदयन वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदयन वाजपेयी |संग्रह=कुछ वाक्य / उदयन वाजपेयी }} {…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:09, 7 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
बरामदे की मेज़ पर खाना खा रहे पिता गुस्से में थाली उठाकर आँगन में फेंक देते हैं। आँगन के फर्ष पर गर्म दाल फैल जाती है। नानी किसी लुप्त प्रजाति के पक्षी की तरह अपनी टेढ़ी टाँगों से चलकर पूजा के कमरे से बाहर निकलती है। मैं नाना को उनके मुवक्किलों के लम्बे-लम्बे मुकदमें पढ़कर सुना रहा हूँ। वे बार-बार मेरे उच्चारणों पर मुझे टोक रहे हैं। घर के जाने किस कोने से निकलकर भाई आँगन में बिखरे बर्तनों को उठाकर पिता के सामने रख देता है। वे उसे पूरी ताकत से घूरते हैं। चौके के दरवाजे़ पर खड़ी माँ सहमने को होती है कि पिता की आँखों का झुकना शुरू हो जाता है।
माँ का कद बढ़ते-बढ़ते आसमान तक जा पहुँचता है।