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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : घमासान हो रहा<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : जो मिरा इक महबूब है<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[भारतेन्दु मिश्र]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अरुणा राय]]</td>
 
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आसमान लाल-लाल हो रहा
+
जो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए क्या ख़ूब है
धरती पर घमासान हो रहा।
+
आँखें उसकी काली हँसी, दो डग चले बस डूब है
 +
पकड़ उसकी सख़्त है  पर छूना उसका दूब है
 +
हैं पाँव उसके चंचल बहुत, रूकें तो पाहन बाख़ूब हैं
  
हरियाली खोई है
+
जो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए क्या ख़ूब है....
नदी कहीं सोई है
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फसलों पर फिर किसान रो रहा।
+
 
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सुख की आशाओं पर
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खंडित सीमाओं पर
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सिपाही लहूलुहान सो रहा।
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चिनगी के बीज लिए
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विदेशी तमीज लिए
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परदेसी यहाँ धान बो रहा।
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10:30, 16 जुलाई 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : जो मिरा इक महबूब है
  रचनाकार: अरुणा राय
जो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए क्या ख़ूब है 
आँखें उसकी काली हँसी, दो डग चले बस डूब है 
पकड़ उसकी सख़्त है  पर छूना उसका दूब है 
हैं पाँव उसके चंचल बहुत, रूकें तो पाहन बाख़ूब हैं

जो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए क्या ख़ूब है....