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"अज्ञात देश से आना / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मैं देख नहीं पाया हूँ,
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फिर पल भर दुख भी देखा।
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मैं देख नहीं पाया हूँ,
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फिर उठना, फिर गिर पड़ना
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आशा है, वहीं निराशा
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अभिलाषा ही अभिलाषा?
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अज्ञात देश से आना,
 
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अज्ञात देश को जाना,
 
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अज्ञात अरे क्या इतनी
 
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है हम सब की परिभाषा ?
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पल-भर परिचित वन-उपवन,
 
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परिचित है जग का प्रति कन,
 
परिचित है जग का प्रति कन,
 
फिर पल में वहीं अपरिचित
 
फिर पल में वहीं अपरिचित
हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन ।
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है क्या रहस्य बनने में ?
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है कौन सत्य मिटने में?
 
मेरे प्रकाश दिखला दो
 
मेरे प्रकाश दिखला दो
मेरा भूला अपनापन । </poem>
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मेरा भूला अपनापन।</poem>

11:12, 16 जुलाई 2010 का अवतरण

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
अपने प्रकाश की रेखा
तम के तट पर अंकित है
निःसीम नियति का लेखा

देने वाले को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर पल भर सुख भी देखा
फिर पल भर दुख भी देखा।

किस का आलोक गगन से
रवि शशि उडुगन बिखराते?
किस अंधकार को लेकर
काले बादल घिर आते?

उस चित्रकार को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर देखा है चित्रों को
बन-बनकर मिट-मिट जाते।

फिर उठना, फिर गिर पड़ना
आशा है, वहीं निराशा
क्या आदि-अन्त संसृति का
अभिलाषा ही अभिलाषा?

अज्ञात देश से आना,
अज्ञात देश को जाना,
अज्ञात अरे क्या इतनी
है हम सब की परिभाषा?

पल-भर परिचित वन-उपवन,
परिचित है जग का प्रति कन,
फिर पल में वहीं अपरिचित
हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन।

है क्या रहस्य बनने में?
है कौन सत्य मिटने में?
मेरे प्रकाश दिखला दो
मेरा भूला अपनापन।