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घर-बाहर / चंद्र रेखा ढडवाल
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15:25, 16 जुलाई 2010
झाड़ते-पोंछते
बर्तन-भांडा करते
उधड़ा हुआ
सिल्स्ते
सिलते
राँधते-पकाते
घर में
माँ होती हूँ
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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