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"साथ-साथ औरत / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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07:34, 17 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
चलती है ज़िन्दगी
और ज़िन्दगी के साथ-साथ औरत
कोई/पहियों पर सवार
रास्तोम के किनारे सजे
घरों को मिट्टी में रँगते
उनमें रहते लोगों
और अपने बीच तानते हुए
एक चादर धूल-धूसरित
कोई/देखते एक-एक पेड़
पेड़ पर बैठी चिड़िया
चिड़िया की चोंच में दाना
दाना समाए चोंच में
खुल रही जो सम्मुख उचक-उचक
उससे पहले ही
झपट ले जाते बाज को
कोई/पीठ पर लादे बोझ
जो चलाए उसे धकियाते हुए
और वह दरकिनार करते
दाएँ-बाएँ की सारी बारीकियाँ
नकारते हुए
धूल-चिड़िया-बाज
देखे बोझ
सोचे बोझ
कहे नहीं
महसूस करे
बोझ