भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भारती पुकारती / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: परम पुनीत पुण्यभूमि भारती उठो युवाओं माँ तुम्हें पुकारती। सत्…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
परम पुनीत पुण्यभूमि भारती
+
{{KKGlobal}}
उठो युवाओं माँ तुम्हें पुकारती।
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
 +
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
परम पुनीत पुण्यभूमि भारती
 +
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती।
  
सत्य दान शीलता की मूर्ति,
+
सत्य दान शीलता की मूर्ति,
अभीष्ट सब पदार्थों की पूर्ति।
+
अभीष्ट सब पदार्थों की पूर्ति।
चंद्रमा-सी जिसकी धवल कीर्ति
+
चंद्रमा-सी जिसकी धवल कीर्ति
बनी विपन्नता की प्रतिमूर्ति
+
बनी विपन्नता की प्रतिमूर्ति
वो आस भरी दृष्टि से निहारती
+
वो आस भरी दृष्टि से निहारती
उठो युवाओं माँ तुम्हें पुकारती।
+
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती।
  
राम-कृष्ण की ये पावन धृति
+
राम-कृष्ण की ये पावन धृति
श्लांघनीय संस्कृत सुसंस्कृति
+
श्लांघनीय संस्कृत सुसंस्कृति
रत्नपूर्ण इस धरा की संतति
+
रत्नपूर्ण इस धरा की संतति
क्यों है अशक्त काँच के प्रति
+
क्यों है अशक्त काँच के प्रति
मातृभक्ति पर कभी न हारती
+
मातृभक्ति पर कभी न हारती
उठो युवाओं माँ तुम्हें पुकारती
+
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती
  
झाँक लो ज़रा सुखद अतीत को
+
झाँक लो ज़रा सुखद अतीत को
शौर्य वीर्य धैर्य के प्रतीक को
+
शौर्य वीर्य धैर्य के प्रतीक को
छोड़ भेदभाव की अनीति को
+
छोड़ भेदभाव की अनीति को
जगाओ स्वाभिमान की प्रतीति को
+
जगाओ स्वाभिमान की प्रतीति को
जलाओ दिव्य चेतना की आरती
+
जलाओ दिव्य चेतना की आरती
उठो युवाओं माँ तुम्हें पुकारती
+
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती
 +
</poem>

00:42, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

परम पुनीत पुण्यभूमि भारती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती।

सत्य दान शीलता की मूर्ति,
अभीष्ट सब पदार्थों की पूर्ति।
चंद्रमा-सी जिसकी धवल कीर्ति
बनी विपन्नता की प्रतिमूर्ति
वो आस भरी दृष्टि से निहारती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती।

राम-कृष्ण की ये पावन धृति
श्लांघनीय संस्कृत सुसंस्कृति
रत्नपूर्ण इस धरा की संतति
क्यों है अशक्त काँच के प्रति
मातृभक्ति पर कभी न हारती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती

झाँक लो ज़रा सुखद अतीत को
शौर्य वीर्य धैर्य के प्रतीक को
छोड़ भेदभाव की अनीति को
जगाओ स्वाभिमान की प्रतीति को
जलाओ दिव्य चेतना की आरती
उठो युवाओ! माँ तुम्हें पुकारती