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"सभ्यता / संतोष मायामोहन" के अवतरणों में अंतर
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दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान | दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान | ||
मैं देखती हूं इन्हें | मैं देखती हूं इन्हें | ||
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किसी भविष्य के "थेह" | किसी भविष्य के "थेह" | ||
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− | और | + | और ढूँढ़ने लगती हूं किसी सभ्यता |
के निशान | के निशान | ||
वह मिलती है मुझे | वह मिलती है मुझे |
01:49, 20 जुलाई 2010 का अवतरण
सड़क के दोनों किनारों
खड़े हैं
दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान
मैं देखती हूं इन्हें
और मापने लगती हूँ
किसी भविष्य के "थेह"
की ऊँचाई ।
खोदती हूँ उन्हें
और ढूँढ़ने लगती हूं किसी सभ्यता
के निशान
वह मिलती है मुझे
इन महलों की गहरी नींव में
क्षत-विक्षत
लहूलुहान ।
अनुवाद : मोहन आलोक