भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पावन मंसूबा / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=अरघान / त्रिलोचन }} {{KKCatKavita‎}} <poem> पं…)
(कोई अंतर नहीं)

19:47, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

पंडा रामप्रसाद ने कहा, धर्म जगा है,
धर्म विरोधी देखें, धर्म नहीं डूबा है,
गंगा यमुना के घाटों पर ठाट लगा है
सहज विरागी भी विराग से अब ऊबा है ।
धर्म कर्म का बढ़ने वाला मंसूबा है
संगम, महाकुंभ फिर तीर्थराज ये तीनों
अलग अलग भी दुर्लभ हैं, पावन दूबा है
अभिषेचन के लिए । उमंग से भरे दीनों
के दल पर दल आते हैं । अवमानित, हीनों
के जीवन प्रसून खिलते हैं । सब नर नारी
भूले हुए चले आते हैं, पथ पर बीनों
को छेड़ कर गा रहे हैं, बिसरी लाचारी ।

धर्म न होता तो वह दुनिया कैसे होती,
पुण्य न होता तो प्रवृत्ति क्या ऐसे होती ।