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"रोज़ / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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07:44, 21 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
जलती / बुझती आग पर
तवा रखते सोचती है
कितनी चाहिए होंगी रोटियाँ
बड़े को चार
छोटे को तीन
मुन्नी को आज एक ही
और नन्हे को...
नए सिरे से
करने लगती है जमा घटाव
दिए गए हिस्से में से
रोटी घटाते
घटती है औरत हर बार
घटते-घटते रोज़
पता नहीं कितनी.