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"क्या करूँ मैं / निलय उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निलय उपाध्याय |संग्रह=}} {{KKCatKavita}} <poem> पत्नी घर में न…) |
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13:46, 23 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
पत्नी घर में नहीं और रुपए भी नहीं
और समान ज़रूरी-कहीं तो जाना ही होगा
इस घर के लिए आज
अरे!
यह तो मैं सोच भी नहीं सकता था कि
दुकानदार चलकर आएगा मेरे घर,
कहेगा- नमस्कार
वो जो आपकी मैडम हैं, बोल गई थीं कुछ सामान
रजिस्टर को भी देख लें, इसमें लिखा है
आपका ही नाम...।