भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीत मेरे / हरिवंशराय बच्‍चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
  
 
[[Category:हरिवंशराय बच्‍चन]]
 
[[Category:हरिवंशराय बच्‍चन]]
 
  
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
  
 
गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन।
 
गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन।

00:26, 17 मई 2007 का अवतरण

रचनाकार: हरिवंशराय बच्‍चन

~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~

गीत मेरे, देहरी का दीप-सा बन।

एक दुनिया है हृदय में, मानता हूँ,

वह घिरी तम से, इसे भी जानता हूँ,

छा रहा है किंतु बाहर भी तिमिर-घन,

गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।

प्राण की लौ से तुझे जिस काल बारुँ,

और अपने कंठ पर तुझको सँवारूँ,

कह उठे संसार, आया ज्‍योति का क्षण,

गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।

दूर कर मुझमें भरी तू कालिमा जब,

फैल जाए विश्‍व में भी लालिमा तब,

जानता सीमा नहीं है अग्नि का कण,

गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।

जग विभामय न तो काली रात मेरी,

मैं विभामय तो नहीं जगती अँधेरी,

यह रहे विश्‍वास मेरा यह रहे प्रण,

गीत मेरे, देहरी का द‍ीप-सा बन।