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मुक्ति का आह्वान / अशोक लव
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20:53, 3 अगस्त 2010
पलने लगे मकड़े
बुनते चले गए विषैले तार
उलझने लगे
पावँ
पाँव
चूसने लगे रक्त
फूलने लगे मकड़े
खोलने लगे
दरवाजे
दरवाज़े
खोलने लगे खिड़कियाँ
ना खुले तो
अनिल जनविजय
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