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"कांच के ख्वाब / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं | जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं |
16:04, 8 अगस्त 2010 का अवतरण
देखो आहिस्ता चलो,और भी आहिस्ता ज़रा
देखना,सोच-समझकर ज़रा पावँ रखना
जोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं
कांच के ख्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में
ख्वाब टूटे न कोई,जाग न जायें देखो
जाग जायेगा कोई ख्वाब तो मर जायेगा