भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देखा हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
हर वक़्त मेरे साथ है<br> | हर वक़्त मेरे साथ है<br> | ||
:उलझा हुआ सा कुछ<br><br> | :उलझा हुआ सा कुछ<br><br> | ||
− | होता है यूँ भी रास्ता<br> | + | होता है यूँ भी, रास्ता<br> |
:खुलता नहीं कहीं<br> | :खुलता नहीं कहीं<br> | ||
जंगल-सा फैल जाता है<br> | जंगल-सा फैल जाता है<br> |
22:36, 9 सितम्बर 2010 का अवतरण
देखा हुआ सा कुछ है
तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है
उलझा हुआ सा कुछ
होता है यूँ भी, रास्ता
खुलता नहीं कहीं
जंगल-सा फैल जाता है
खोया हुआ सा कुछ
साहिल की गीली रेत पर
बच्चों के खेल-सा
हर लम्हा मुझ में बनता
बिखरता हुआ सा कुछ
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया
कुछ इस तरह
हर शय से मुस्कुराता है
रोता हुआ सा कुछ
धुँधली-सी एक याद किसी
क़ब्र का दिया
और! मेरे आस-पास
चमकता हुआ सा कुछ
कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है