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"बकवास तंत्र / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | जिन्हें हमारे शहंशाह | ||
+ | पहनते हैं रोब से | ||
+ | और गलीचेदार राजसभाओं में | ||
+ | मंडराते हैं. |
16:11, 17 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
बकवास तंत्र
ज़ाहिर है
इस बकवास तंत्र में
घुट-घुट कर जिंदा रहना
नरभक्षियों के मुंह पर
एक जोरदार तमाचा है
यह जो व्यवस्था है
उसमें आस्था रखना
अज़गर के मुंह में
हंसते-हंसते जानबूझकर
खुद प्रवेश कर जाना है
यह तंत्र भी क्या है
स्वार्थ की कैंची से कटते
निर्दोष-निरीह कपड़े जैसा है
जो अपने मुताबिक़ उसे
खद्दर के कुरते-पाजामें में
ढाल देती है
जिन्हें हमारे शहंशाह
पहनते हैं रोब से
और गलीचेदार राजसभाओं में
मंडराते हैं.