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"मन करै / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>मन कीं न कीं करतो रै’वै । मन करै पाखंड़ी बणूं कळी बणूं फळ बणूं या…) |
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करतो रै’वै । | करतो रै’वै । |
01:58, 24 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
मन
कीं न कीं
करतो रै’वै ।
मन करै
पाखंड़ी बणूं
कळी बणूं
फळ बणूं
या
बा डांडी बणूं
जकी माथै लागै
पांखड़ी
कळी
फूल
फळ ।
अर फेर करै
बणूं भंवरो
सुंघू फूल
बेअंत
कदै ई करै
बणूं रुत
फगत बसंत ।