भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आयो घोष बड़ो व्यापारी / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य | |रचनाकार=देवेन्द्र आर्य | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
आयो घोष बड़ो व्यापारी | आयो घोष बड़ो व्यापारी |
11:00, 26 अक्टूबर 2010 का अवतरण
आयो घोष बड़ो व्यापारी
पोछ ले गयो नींद हमारी
कभी जमूरा कभी मदारी
इसको कहते हैं व्यापारी
रंग गई मन की अंगिया-चूनर
देह ने जब मारी पिचकारी
अपना उल्लू सीधा हो बस
कैसा रिश्ता कैसी यारी
आप नशे पर न्यौछावर हो
मैं अब जाऊँ किस पर वारी
बिकते बिकते बिकते बिकते
रुह हो गई है सरकारी
अब जब टूट गई ज़ंजीरें
क्या तुम जीते क्या मैं हारी
भूख हिकारत और गरीबी
किसको कहते हैं खुद्दारी?
दुनिया की सुंदरतम् कविता
सोंधी रोटी, दाल बघारी