भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जीता जीवन-हारी मौत / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | अब एक हो गया है | |
− | + | बूँदों में बिखरा हुआ भारत | |
− | + | ||
− | + | बल का सागर | |
− | + | अब प्रबल हो गया है | |
− | + | ||
− | + | खुल गई हैं तहें | |
− | + | खुलती जा रही हैं राहें | |
− | + | एक-के-बाद एक; | |
− | + | जय का ज्वार | |
− | + | आ गया है पानी में | |
− | + | ||
− | + | मौत की आ गई है मौत | |
− | + | जीवन का साथ दे रहा है शौर्य | |
− | + | जीता जीवन | |
− | + | हारी मौत | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
'''रचनाकाल: १८-०९-१९६५''' | '''रचनाकाल: १८-०९-१९६५''' | ||
</poem> | </poem> |
19:42, 26 अक्टूबर 2010 का अवतरण
अब एक हो गया है
बूँदों में बिखरा हुआ भारत
बल का सागर
अब प्रबल हो गया है
खुल गई हैं तहें
खुलती जा रही हैं राहें
एक-के-बाद एक;
जय का ज्वार
आ गया है पानी में
मौत की आ गई है मौत
जीवन का साथ दे रहा है शौर्य
जीता जीवन
हारी मौत
रचनाकाल: १८-०९-१९६५