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"जीता जीवन-हारी मौत / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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मैंने तन दे दिया है
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अब एक हो गया है
परेशानियों को
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बूँदों में बिखरा हुआ भारत
चिचोरने के लिए
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मन दे दिया है मैंने
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बल का सागर
बंदूक मारने वाले
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अब प्रबल हो गया है
जवानों को
+
 
दूने मन से
+
खुल गई हैं तहें
देश की लड़ाई लड़ने के लिए
+
खुलती जा रही हैं राहें
शत्रु को परास्त करने के लिए
+
एक-के-बाद एक;
कमजोर हो जाएगा
+
जय का ज्वार
तन तो क्या
+
आ गया है पानी में
मन तो अजय हो जाएगा
+
 
इस लड़ाई में
+
मौत की आ गई है मौत
भविष्य के लिए
+
जीवन का साथ दे रहा है शौर्य
स्वाभिमान से
+
जीता जीवन
नई जिंदगी जीने के लिए
+
हारी मौत
नाव से आदमी बन जाने के लिए
+
प्रकाश से
+
अंधकार भगाने के लिए
+
देह में दीपक जलाने के लिए
+
नेह में फूल खिलाने के लिए
+
संकट और अंधकार
+
एक साथ आए हैं
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कुछ दिन में
+
एक साथ जाएँगे
+
भारत को छोड़
+
कहीं और विलय जाएँगे
+
  
 
'''रचनाकाल: १८-०९-१९६५'''
 
'''रचनाकाल: १८-०९-१९६५'''
 
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19:42, 26 अक्टूबर 2010 का अवतरण

अब एक हो गया है
बूँदों में बिखरा हुआ भारत

बल का सागर
अब प्रबल हो गया है

खुल गई हैं तहें
खुलती जा रही हैं राहें
एक-के-बाद एक;
जय का ज्वार
आ गया है पानी में

मौत की आ गई है मौत
जीवन का साथ दे रहा है शौर्य
जीता जीवन
हारी मौत

रचनाकाल: १८-०९-१९६५