"बाढ़ / मणि मधुकर" के अवतरणों में अंतर
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मौत का दरिया | मौत का दरिया | ||
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बहता है | बहता है | ||
− | क्या वह | + | क्या वह बूँद-बूँद के लिए मुहताज ढाणियों की सदा-रमजान |
प्यास बूझा सकता है | प्यास बूझा सकता है | ||
मुझे नहीं पता क्यों पर बालपने के उस अबूझ | मुझे नहीं पता क्यों पर बालपने के उस अबूझ | ||
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खड़ा हूं | खड़ा हूं | ||
− | एक घर : घोंसले की | + | एक घर : घोंसले की भाँति औंधा तैरता हुआ |
एक बैल : चाम के बोरे की तरह | एक बैल : चाम के बोरे की तरह | ||
फूल कर | फूल कर | ||
− | पेड़ की जड़ों से | + | पेड़ की जड़ों से फँसा हुआ |
एक लहंगा : मोमाक्खी के छत्ते-सा फैला हुआ | एक लहंगा : मोमाक्खी के छत्ते-सा फैला हुआ | ||
आकाश के बेलगाम बादलों की दौड़ हिनहिनाहट और | आकाश के बेलगाम बादलों की दौड़ हिनहिनाहट और | ||
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अपने गीले कपड़ों में, तर-तर टपकते हुए अंगों में | अपने गीले कपड़ों में, तर-तर टपकते हुए अंगों में | ||
− | कोई विकल्प | + | कोई विकल्प ढूँढ़ना आत्महत्या है |
लेकिन मैं अन्धापन स्वीकारने से पहले धरती की उस धुरी | लेकिन मैं अन्धापन स्वीकारने से पहले धरती की उस धुरी | ||
− | को चीन्ह लेना चाहता | + | को चीन्ह लेना चाहता हूँ जो मेरे देखते-देखते जम्हूरियत के |
जाली जश्न में डूब गयी है ! | जाली जश्न में डूब गयी है ! | ||
('घास का घराना' से) | ('घास का घराना' से) | ||
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00:57, 31 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण
बड़की बा से सुनी थी मैंने वह कहानी
जिसमें
एक सूना वनखंड था और डरावना डूंगर
गुफा के तिखंडे तल्ले
पर सोता था दगरू-दाना
उसके खूँटेनुमा दांतों और गन्दे होठों की दरारों से फूटता था
मौत का दरिया
मौत का दरिया कैसा होता है क्या उसमें पानी
बहता है
क्या वह बूँद-बूँद के लिए मुहताज ढाणियों की सदा-रमजान
प्यास बूझा सकता है
मुझे नहीं पता क्यों पर बालपने के उस अबूझ
दौर में
मैं कहीं किसी दरिया को पाने की
ख्वाहिश रखता था
और करीमन बी की लाडो कुहनी मार कर जब-तब
मेरी मातमी शक्ल का मजाक
बनाती थी
वह मजाक वह मातम वह मौत का दरिया
लहरा रहा है, आज
मेरी आंखों के आगे
और मैं एक टूटे हुए मचान पर नामालूम-सा
खड़ा हूं
एक घर : घोंसले की भाँति औंधा तैरता हुआ
एक बैल : चाम के बोरे की तरह
फूल कर
पेड़ की जड़ों से फँसा हुआ
एक लहंगा : मोमाक्खी के छत्ते-सा फैला हुआ
आकाश के बेलगाम बादलों की दौड़ हिनहिनाहट और
लगातार झरता हुआ जहर
अपने गीले कपड़ों में, तर-तर टपकते हुए अंगों में
कोई विकल्प ढूँढ़ना आत्महत्या है
लेकिन मैं अन्धापन स्वीकारने से पहले धरती की उस धुरी
को चीन्ह लेना चाहता हूँ जो मेरे देखते-देखते जम्हूरियत के
जाली जश्न में डूब गयी है !
('घास का घराना' से)