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"अंधियार ढल कर ही रहेगा / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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अंधियार ढल कर ही रहेगा <br><br>
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अंधियार ढल कर ही रहेगा  
  
आंधियां चाहें उठाओ,<br>
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आंधियां चाहें उठाओ,
बिजलियां चाहें गिराओ,<br>
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बिजलियां चाहें गिराओ,
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।<br><br>
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जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।
  
रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये,<br>
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रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये,
वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये,<br>
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वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये,
वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है,<br>
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वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है,
जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये,<br>
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जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये,
उग रही लौ को न टोको,<br>
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उग रही लौ को न टोको,
ज्योति के रथ को न रोको,<br>
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ज्योति के रथ को न रोको,
यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा।<br>
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यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।<br><br>
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जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।
  
दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार है वह,<br>
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दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार है वह,
धूप में कुछ भी न, तम में किन्तु पहरेदार है वह,<br>
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धूप में कुछ भी न, तम में किन्तु पहरेदार है वह,
दूर से तो एक ही बस फूंक का वह है तमाशा,<br>
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दूर से तो एक ही बस फूंक का वह है तमाशा,
देह से छू जाय तो फिर विप्लवी अंगार है वह,<br>
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देह से छू जाय तो फिर विप्लवी अंगार है वह,
व्यर्थ है दीवार गढना,<br>
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व्यर्थ है दीवार गढना,
लाख लाख किवाड़ जड़ना,<br>
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लाख लाख किवाड़ जड़ना,
मृतिका के हांथ में अमरित मचलकर ही रहेगा।<br>
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मृतिका के हांथ में अमरित मचलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।<br><br>
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जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।
  
है जवानी तो हवा हर एक घूंघट खोलती है,<br>
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है जवानी तो हवा हर एक घूंघट खोलती है,
टोक दो तो आंधियों की बोलियों में बोलती है,<br>
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टोक दो तो आंधियों की बोलियों में बोलती है,
वह नहीं कानून जाने, वह नहीं प्रतिबन्ध माने,<br>
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वह नहीं कानून जाने, वह नहीं प्रतिबन्ध माने,
वह पहाड़ों पर बदलियों सी उछलती डोलती है,<br>
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वह पहाड़ों पर बदलियों सी उछलती डोलती है,
जाल चांदी का लपेटो,<br>
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जाल चांदी का लपेटो,
खून का सौदा समेटो,<br>
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खून का सौदा समेटो,
आदमी हर कैद से बाहर निकलकर ही रहेगा।<br>
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आदमी हर कैद से बाहर निकलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।<br><br>
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जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।
  
वक्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा है,<br>
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वक्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा है,
बच गया तलवार से तो फूल से कटना पड़ा है,<br>
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बच गया तलवार से तो फूल से कटना पड़ा है,
क्यों न कितनी ही बड़ी हो, क्यों न कितनी ही कठिन हो,<br>
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क्यों न कितनी ही बड़ी हो, क्यों न कितनी ही कठिन हो,
हर नदी की राह से चट्टान को हटना पड़ा है,<br>
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हर नदी की राह से चट्टान को हटना पड़ा है,
उस सुबह से सन्धि कर लो,<br>
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उस सुबह से सन्धि कर लो,
हर किरन की मांग भर लो,<br>
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हर किरन की मांग भर लो,
है जगा इन्सान तो मौसम बदलकर ही रहेगा।<br>
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है जगा इन्सान तो मौसम बदलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा|<br><br>
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जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।
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01:12, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण

अंधियार ढल कर ही रहेगा

आंधियां चाहें उठाओ,
बिजलियां चाहें गिराओ,
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

रोशनी पूंजी नहीं है, जो तिजोरी में समाये,
वह खिलौना भी न, जिसका दाम हर गाहक लगाये,
वह पसीने की हंसी है, वह शहीदों की उमर है,
जो नया सूरज उगाये जब तड़पकर तिलमिलाये,
उग रही लौ को न टोको,
ज्योति के रथ को न रोको,
यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार है वह,
धूप में कुछ भी न, तम में किन्तु पहरेदार है वह,
दूर से तो एक ही बस फूंक का वह है तमाशा,
देह से छू जाय तो फिर विप्लवी अंगार है वह,
व्यर्थ है दीवार गढना,
लाख लाख किवाड़ जड़ना,
मृतिका के हांथ में अमरित मचलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

है जवानी तो हवा हर एक घूंघट खोलती है,
टोक दो तो आंधियों की बोलियों में बोलती है,
वह नहीं कानून जाने, वह नहीं प्रतिबन्ध माने,
वह पहाड़ों पर बदलियों सी उछलती डोलती है,
जाल चांदी का लपेटो,
खून का सौदा समेटो,
आदमी हर कैद से बाहर निकलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

वक्त को जिसने नहीं समझा उसे मिटना पड़ा है,
बच गया तलवार से तो फूल से कटना पड़ा है,
क्यों न कितनी ही बड़ी हो, क्यों न कितनी ही कठिन हो,
हर नदी की राह से चट्टान को हटना पड़ा है,
उस सुबह से सन्धि कर लो,
हर किरन की मांग भर लो,
है जगा इन्सान तो मौसम बदलकर ही रहेगा।
जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।