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"ताज़गी उभर आई / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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12:28, 8 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

सूखी-सी देह डाल कलियाई
जा! तेरी याद छू गई धाई ।

ठहरे जल को जैसे छू गया पवन
टोर-छोर बाँध गई ठंडी सिहरन
भीतर सोयी छाया अँगड़ाई ।

धीमे-धीमे बिहँसे पंखुरी नयन
महक गया भोले मन का बासीपन
होठों तक ताज़गी उभर आई ।