गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
रेत के समन्दर सी/ रमा द्विवेदी
3 bytes removed
,
04:35, 10 नवम्बर 2010
चाहे बना लो रेत के कितने घरौंदे तुम,
वक़्त के उबाल में
ढ़ह
ढह
जाए ज़िन्दगी।
जिनका वजूद रेत के तले दबा दिया,
उनको ही चट्टान बनाए यह ज़िन्दगी।
</poem>
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits