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14:03, 12 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
ग़म बिकते है
बाजारों में
ग़म काफी महंगे बिकते है
लहजे की दूकान अगर चल जाये तो
जज्बे<ref>भावनाओं</ref> के गाहक
छोटे बड़े हर ग़म के खिलोने
मुंह मांगी कीमत पे खरीदें
मेने हमेशा अपने ग़म अच्छे दामों बेचे है
लेकिन
जो ग़म मुझको आज मिला है
किसी दुकां पर रखने के काबिल ही नहीं है
पहली बार में शर्मिन्दा हूँ
ये ग़म बेच नहीं पाऊंगा
शब्दार्थ
<references/>