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"बाघिन / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
 
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लम्बी जिह्वा, मदमाते दृग झपक रहे हैं
 
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बूँद लहू के उन जबड़ों से टपक रहे हैं
बूंद लहू के उन जबड़ों से टपक रहे हैं
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चबा चुकी है ताजे शिशुमुंडों को गिन-गिन
 
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गुर्राती है, टीले पर बैठी है बाघिन
 
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पकड़ो, पकड़ो, अपना ही मुँह आप न नोचे!
पकड़ो, पकड़ो, अपना ही मुंह आप न नोचे!
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पगलाई है, जाने, अगले क्षण क्या सोचे!
 
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इस बाघिन को रखेंगे हम चिड़ियाघर में
 
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ऐसा जन्तु मिलेगा भी क्या त्रिभुवन भर में!
  
ऎसा जन्तु मिलेगा भी क्या त्रिभुवन भर में!
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(१९७४)  
 
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(१९७४ में रचित,'खिचड़ी विप्लव देखा हमने' नामक संग्रह से )
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11:55, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

लम्बी जिह्वा, मदमाते दृग झपक रहे हैं
बूँद लहू के उन जबड़ों से टपक रहे हैं
चबा चुकी है ताजे शिशुमुंडों को गिन-गिन
गुर्राती है, टीले पर बैठी है बाघिन

पकड़ो, पकड़ो, अपना ही मुँह आप न नोचे!
पगलाई है, जाने, अगले क्षण क्या सोचे!
इस बाघिन को रखेंगे हम चिड़ियाघर में
ऐसा जन्तु मिलेगा भी क्या त्रिभुवन भर में!

(१९७४)