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"अधबनी कविताएँ / मनीष मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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18:37, 24 नवम्बर 2010 का अवतरण

अब नहीं है हमारे पास समय
शब्दों से खेलने का।
हमें बोलने हैं छोटे और सरल शब्द
और
तय करनी है अपनी भाषा
एक हथियार की तरह।
हमें संवर्धित करने हैं शब्द
अपनी रोजी-रोटी की तरह
हमें लगातार गुजरना है
संवाद स्थापत्य की प्रक्रियाओं से
और बचाना है शब्दों को खारिज होने से।